Sunday, December 5, 2010

हँसतें हुए रिश्तो का खूबसूरत बाग़

हँसतें हुए रिश्तो का कोई खूबसूरत बाग़ हो,

जहा रिश्तों में स्नेह की मनमोहक महक हो,

सुख हो या दुःख,  

हर मौसम में मुस्कान और संयुक्ता हो,

हर पल नए मिलन का एहसास हो,

ऐसा कोई जहाँ बने जिसे जीवन कह सके,

जिसकी शक्ति को वक़्त भी मिटा न सके,

ऐसी तक, तक़दीर और ताकत के संगम को "प्यार" कहते है,

जिसमें सद विचार और व्यवहार सम्मलित होते है,

जिसका व्यापार नहीं किया जा सकता,

(श्री हरीश खेतानी "हरि")

?????कदमो का नाम है जीवन......

जो हँस कर हँसा सके, रुला सके और खुद रो भी सके ऐसे मुकामो से गुजरे हुए और, गुजरते हुए कदमो का नाम है जीवन..
जो जीने का कारण भी है, उस कारण में कभी आंसू न बहे हो और मुस्कान न खिली हो तो वह मन के मरण का सबूत भी है, तन और धन का अंत कभी न कभी निरधारित है, किन्तु मन का मरण वाकई बेवक्त हुए बेमौत पतन का प्रमाण है, जिसे दुनिया की यादों की यादी में कोई जगह नहीं मिलती, यदि थोड़ी सी भी जगह मिल जाए तो वह दिल का स्वर्ग है, जिसकी रंगीन फूलों से भरपूर बहारों की हरियाली में, हमेंशा प्रेमभक्ति रस के गीत संगीत समेत गुंजन, सुहासित धुपसली की तरह बरक़रार रहता है,
(श्री हरीश खेतानी "हरि")

Saturday, October 23, 2010

इश्वर से शिकायत

टूटे सितारें जब भी गगन के बंधन से,
मिटे फूल जब भी चमन के आँगन से,
न करना कोई फरियाद, संयम रखना,
रूठे अपने, जब जीवन के अपनेपन से,
(श्री हरीश खेतानी "हरि")


कहने का तात्पर्य यह कि जब हमारी उम्मीदें और सपने टूटते है,
परिवार में से कोई देह का त्याग करता है,
जीवन से कोई हमेंशा के लिए जुदा हो जाता है,
या फिर कोई अपना, किसी भूल या गैरसमज  की वजह से रूठ जाए,
तब दुःख का एहसास स्वाभाविक है,
फिरभी संयम तथा समय को दवा मान कर,
हालातों से समझोता कर लिया जाए तो,
इश्वर से शिकायत रखना नामुमकिन बन जाएंगा,
(श्री हरीश खेतानी "हरि")

दिल का फूल

उल्फ़त की बहारों में, 
हुस्न के चमन में,
प्रेमदिलों की राहों में, 
ख्वाबों, ख्यालों में,
हर हाल में, 
होंठों पे जो गुल मुस्कुरातें है, 
वह सही चाहत के, 
सुहासित सुमन होते है, 
जो सिर्फ दिलों में खिलते है, 
जिसे, 
दिल का फूल कहते है,

(श्री हरीश खेतानी "हरि")

Wednesday, October 20, 2010

आभार कभी निराधार नहीं होना चाहिए,

आभार कभी निराधार नहीं होना चाहिए,
बल्कि उसकी संगीन बुनियाद भी होनी चाहिए,
उसे कोई न कोई आधार के जरिये व्यक्त किया जाए तो वह,
सही मायने में आभार बनता है,
क्योंकि वह अनराधार भाव और भार पूर्वक बना हुआ होना चाहिए,
जो सह और स्व भार तथा भाव से साभार में तबदील हो जाता है,
ऐसे अपार भाव और भार से भरा हुआ आभार का आधार मै,
आपके अमूल सहकार लिए,
आपको सादर समर्प्रित करता हूँ,
आभार!
(श्री हरीश खेतानी "हरि")

मिट गए बेकसूर,

खबर आई उन्की हवाओ से, और हम सो न सके पल भर,
मिलन की गुंजाईश थी, और हम सब्र न कर सके पल भर,
बेवजह कहके अलविदा, "हरि" से जुदा हुई थी वह चुप के से,
जब उन्की डोली गुजरी सामने से, हम जी न सके पल भर,
फूलों की हर ख्वाहिशे खुशबू से हो, ऐसी कोई मजा होती तो महेफिल बना लेते,
पलकों ने हर पल लिज्जत से देखा, अदा में जरा भी लज्जा होती तो शर्मा लेते,
हमने चाहा बेहद, पर मिट गए बेकसूर, जब तेरी डोली हमारी परछाई से गुजरी,
रजा होती तो दिल में समा लेते, मौत से भी बड़ी कोई सजा होती तो भी सह लेते,
(श्री हरीश खेतानी "हरि")

शुभकामनाये

स्नेह के अनुपम भाव,
भावों में, सितारों की हाजिरी,
और शरद पूनम के चाँद से निकलती हुई चांदनी का आभास,
ऐसे माहौल में दिल से निकलती हुई शुभकामनाये,
सभी दोस्तों और रिश्तों को सादर......प्रणाम के साथ...

प्यारा रिश्ता कभी पराया नहीं बन सकता,

प्यारा रिश्ता कभी पराया नहीं बन सकता,

फूल की तरह, उसकी खुशबू दिखाई नहीं देती मगर वह होती जरुर है,

हवा भी होती है मगर दिखाई नहीं देती, जो दिखाई नहीं देती वही इश्वर की संगत होती है,

याद भी दिखाई नहीं देती किन्तु अहसास दिलाती रहती है,

करीब होते है तब न याद होती है न कीमत,

दूर रहते है तब ही इन दो बातों की कदर होती है,

अगर कदर न हो कभी, वह रिश्ता प्यारा नहीं होता,

काश कोई जवाब होता

फूलों की कोई भाषा नहीं होती तो फिर सुहास और रंगत को क्या समझे !
आभ की कोई अभिलाषा नहीं होती तो सितारों की संगत को क्या समझे !
बर्फ की चादर से लिपटी हुई पहाड़ियों, वादिओं को ठण्ड का पता नहीं होता,
धरती की कोई मधुशाला नहीं होती तो झील झरनों की पंगत को क्या समझे!

जमीन पर, चाँद तारों समेत नभ को लाने वाला काश कोई जवाब होता,
मन में भक्ति, शक्ति समेत रभ को लाने वाला काश कोई लाजवाब होता,

(श्री हरीश खेतानी "हरि") 

इश्वर का हस्ताक्षर

संगीन कारण से जो किरण निकलती है,

उसका तेज या प्रकाश का प्रकार कभी कभार ही देखने को मिलता है,

जब देखने को मिले तब उस आकार को इश्वर का हस्ताक्षर समझ लेना,

पर्वत, झरनें, नदियाँ, सागर,

पेड़, पौधे, फूल, पंछी, आकाश, और भी..

यह सब इश्वर के हस्ताक्षर ही तो है,

फूल भी न केवल मुस्कुरा सकते है, बल्कि बोल भी सकते है,

जब उसकी भाषा समझ में आने लगे तब उसे इश्वर का साक्षात्कार मान लेना,

(श्री हरीश खेतानी "हरी")

Monday, September 6, 2010

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समभाव से ही संप संभव बनता है,

जो हमें कुछ लाभदायक सिखाये, या जिसकी राय से हमारे जीवन को कोई नई राह मिले तो वह शिक्षक, सही शिक्षक, माँ-बाप की तरह हमेशा इश्वर से काफी करीब होता है, जो जन्म और उचित शिक्षा का दान करके हमें कुछ अलग रूप देने का प्रयास करते है,
 ऐसे शिक्षको के दिन पर,

सभी मित्रों और रिश्तों को शुभ और लाभ भरी कामनायें, 

 

 ऐसे तमाम शिक्षको को मेरा नम्र निवेदन है कि अपने विद्यार्थिओं की कोई भूल के वक्त,
क्षमादान और समाधान से काम लेते हुए उनकी भूलों को दूर करने का प्रयास जारी रखे,
न कि उसका बहिस्कार करके उन्हें शिक्षा दान से वंचित रखे,
और शिक्षा दान के दौरान कोई भेदभाव भी नहीं रखना चाहिए,
ऐसा करने से विद्यार्थी में अवगुण पैदा हो जाते है, जो उन्हें नई राह से विमुख बना देते है,
सही शिक्षण से जो विमुख बनायें वह काम शिक्षक का नहीं,
क्योंकि समभाव से ही संप संभव बनता है,
इसलिए जो संप और संयम से अपने या दूसरों के जीवन को सजाये वही जीवन शिक्षक भी हो सकता है,

Monday, April 5, 2010

जो विषय अपने चुना है, उस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है, प्रतिभाव अछे भी मिल सकते है और बुरे भी, फिरभी मै संक्षिप्त में यही कहना पसंद करूँगा कि मनभेद और मतभेद बढ़ने लगे है, इसलिए शादी का महत्व कम होता जा रहा है, प्रेम कम और वासना अधिकतम नजर आ रही है, उम्र की लम्बाई कम महसूस होती है, महेनत कम होती जा रही है, लोगो को कम समय में बिना जरुरी महेनत किये बड़ा बनना है,इसीलिए घरवाली और बच्चे, रास्ते का अवरोध लगता है, आज की टीवी चेनलो ने भी लोगो की दिमागी हालत को खोखला करने में बड़ी भूमिका निभाई है, इंटरनेट का जरिया भी उतना ही खतरनाक साबित हो रहा है, लोगो को एक से संतोष नहीं हो रहा है इसलिए अधिक में मानने लगे है, बाहरवाली का पता चलता है तो घरवाली से मनभेद हो जाता है, गृहस्ती में पहले जितना विश्वास नहीं रहा है, शक की मात्रा बढ़ रही है, इस प्रकार के बहुत से कारण है जो नई पेढ़ी को गुमराह कर रहा है, जीवन पुराने हिन्दुस्तानी जैसा संयमी और विवेकी नहीं रहा है, विदेशी जीवन का मिश्रण बढ़ रहा है, जोकि अभी ज्यादा कुछ बिगड़ा भी नहीं है, अगले पंद्रह साल के बाद जो हालत होंगे वह तो आज से भी काफी गुना अधिक ख़राब होंगे, तब आज जो हालत है वह बेहतर लगेंगे, तब जब बेटे की शादी होंगी तब बाप शायद हयात ही नहीं होंगे, या फिर दादा की उम्र के होंगे, यह भी हो सकता है कि बिना शादी किये, लोग सरेआम शादीशुदा की तरह रहने लगेंगे, ताकि मतभेद होने लगे तब बिना कोई रस्म निभाए छुटकारा हांसिल किया जा सके,        
            जिस समस्या की हम चर्चा कर रहे है दोस्तों ! वह केवल युवा वर्ग से ही नहीं बल्कि हर वर्ग से संबधित है, बच्चो के आसार भी बदले हुए है, बुढो के स्वभाव में भी वासना तेज नजर आ रही है, संत समाज हो या मंदिर का पवित्र आँगन, नेता हो या विद्या शिक्षक, हर वर्ग के विचार और संस्कार में पवित्रता कम नजर आ रही है, अजीब सी दौड़ लगी हुई है, देखादेखी और दूसरो को पीछे छोड़ने की दौड़,मानसिकता बदली हुई है, सब अपने आपको दूसरे के मुकाबले में अधिक उतम दिखाने की कशमकश में, अछे जीवन से दूर होते जा रहे है, खुद की बुराइया को नजर अंदाज करके दूसरो की अछाईया की कड़ी टिक्का करने में लगे हुए है, यह बिगाड़ हर वर्ग में असाद्य रोग की तरह फैला हुवा है, संत वर्ग भी अपने मार्ग से भटके हुए है, इसलिए मनुष्यों को सही राह नहीं दिखा पा रहे है, नेता लोग भी जनता को गुमराह कर रहे है, किस किस को दोष देंगे हम, सब दोषी की तरह जी रहे है,

Wednesday, March 31, 2010

Shree Haree'sh Surprises