Wednesday, October 20, 2010

काश कोई जवाब होता

फूलों की कोई भाषा नहीं होती तो फिर सुहास और रंगत को क्या समझे !
आभ की कोई अभिलाषा नहीं होती तो सितारों की संगत को क्या समझे !
बर्फ की चादर से लिपटी हुई पहाड़ियों, वादिओं को ठण्ड का पता नहीं होता,
धरती की कोई मधुशाला नहीं होती तो झील झरनों की पंगत को क्या समझे!

जमीन पर, चाँद तारों समेत नभ को लाने वाला काश कोई जवाब होता,
मन में भक्ति, शक्ति समेत रभ को लाने वाला काश कोई लाजवाब होता,

(श्री हरीश खेतानी "हरि") 

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