Wednesday, October 20, 2010

मिट गए बेकसूर,

खबर आई उन्की हवाओ से, और हम सो न सके पल भर,
मिलन की गुंजाईश थी, और हम सब्र न कर सके पल भर,
बेवजह कहके अलविदा, "हरि" से जुदा हुई थी वह चुप के से,
जब उन्की डोली गुजरी सामने से, हम जी न सके पल भर,
फूलों की हर ख्वाहिशे खुशबू से हो, ऐसी कोई मजा होती तो महेफिल बना लेते,
पलकों ने हर पल लिज्जत से देखा, अदा में जरा भी लज्जा होती तो शर्मा लेते,
हमने चाहा बेहद, पर मिट गए बेकसूर, जब तेरी डोली हमारी परछाई से गुजरी,
रजा होती तो दिल में समा लेते, मौत से भी बड़ी कोई सजा होती तो भी सह लेते,
(श्री हरीश खेतानी "हरि")

No comments: