Wednesday, October 20, 2010

आभार कभी निराधार नहीं होना चाहिए,

आभार कभी निराधार नहीं होना चाहिए,
बल्कि उसकी संगीन बुनियाद भी होनी चाहिए,
उसे कोई न कोई आधार के जरिये व्यक्त किया जाए तो वह,
सही मायने में आभार बनता है,
क्योंकि वह अनराधार भाव और भार पूर्वक बना हुआ होना चाहिए,
जो सह और स्व भार तथा भाव से साभार में तबदील हो जाता है,
ऐसे अपार भाव और भार से भरा हुआ आभार का आधार मै,
आपके अमूल सहकार लिए,
आपको सादर समर्प्रित करता हूँ,
आभार!
(श्री हरीश खेतानी "हरि")

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