टूटे सितारें जब भी गगन के बंधन से,
मिटे फूल जब भी चमन के आँगन से,
न करना कोई फरियाद, संयम रखना,
रूठे अपने, जब जीवन के अपनेपन से,
(श्री हरीश खेतानी "हरि")
कहने का तात्पर्य यह कि जब हमारी उम्मीदें और सपने टूटते है,
परिवार में से कोई देह का त्याग करता है,
जीवन से कोई हमेंशा के लिए जुदा हो जाता है,
या फिर कोई अपना, किसी भूल या गैरसमज की वजह से रूठ जाए,
तब दुःख का एहसास स्वाभाविक है,
फिरभी संयम तथा समय को दवा मान कर,
हालातों से समझोता कर लिया जाए तो,
इश्वर से शिकायत रखना नामुमकिन बन जाएंगा,
(श्री हरीश खेतानी "हरि")
Saturday, October 23, 2010
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