Monday, April 5, 2010

जो विषय अपने चुना है, उस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है, प्रतिभाव अछे भी मिल सकते है और बुरे भी, फिरभी मै संक्षिप्त में यही कहना पसंद करूँगा कि मनभेद और मतभेद बढ़ने लगे है, इसलिए शादी का महत्व कम होता जा रहा है, प्रेम कम और वासना अधिकतम नजर आ रही है, उम्र की लम्बाई कम महसूस होती है, महेनत कम होती जा रही है, लोगो को कम समय में बिना जरुरी महेनत किये बड़ा बनना है,इसीलिए घरवाली और बच्चे, रास्ते का अवरोध लगता है, आज की टीवी चेनलो ने भी लोगो की दिमागी हालत को खोखला करने में बड़ी भूमिका निभाई है, इंटरनेट का जरिया भी उतना ही खतरनाक साबित हो रहा है, लोगो को एक से संतोष नहीं हो रहा है इसलिए अधिक में मानने लगे है, बाहरवाली का पता चलता है तो घरवाली से मनभेद हो जाता है, गृहस्ती में पहले जितना विश्वास नहीं रहा है, शक की मात्रा बढ़ रही है, इस प्रकार के बहुत से कारण है जो नई पेढ़ी को गुमराह कर रहा है, जीवन पुराने हिन्दुस्तानी जैसा संयमी और विवेकी नहीं रहा है, विदेशी जीवन का मिश्रण बढ़ रहा है, जोकि अभी ज्यादा कुछ बिगड़ा भी नहीं है, अगले पंद्रह साल के बाद जो हालत होंगे वह तो आज से भी काफी गुना अधिक ख़राब होंगे, तब आज जो हालत है वह बेहतर लगेंगे, तब जब बेटे की शादी होंगी तब बाप शायद हयात ही नहीं होंगे, या फिर दादा की उम्र के होंगे, यह भी हो सकता है कि बिना शादी किये, लोग सरेआम शादीशुदा की तरह रहने लगेंगे, ताकि मतभेद होने लगे तब बिना कोई रस्म निभाए छुटकारा हांसिल किया जा सके,        
            जिस समस्या की हम चर्चा कर रहे है दोस्तों ! वह केवल युवा वर्ग से ही नहीं बल्कि हर वर्ग से संबधित है, बच्चो के आसार भी बदले हुए है, बुढो के स्वभाव में भी वासना तेज नजर आ रही है, संत समाज हो या मंदिर का पवित्र आँगन, नेता हो या विद्या शिक्षक, हर वर्ग के विचार और संस्कार में पवित्रता कम नजर आ रही है, अजीब सी दौड़ लगी हुई है, देखादेखी और दूसरो को पीछे छोड़ने की दौड़,मानसिकता बदली हुई है, सब अपने आपको दूसरे के मुकाबले में अधिक उतम दिखाने की कशमकश में, अछे जीवन से दूर होते जा रहे है, खुद की बुराइया को नजर अंदाज करके दूसरो की अछाईया की कड़ी टिक्का करने में लगे हुए है, यह बिगाड़ हर वर्ग में असाद्य रोग की तरह फैला हुवा है, संत वर्ग भी अपने मार्ग से भटके हुए है, इसलिए मनुष्यों को सही राह नहीं दिखा पा रहे है, नेता लोग भी जनता को गुमराह कर रहे है, किस किस को दोष देंगे हम, सब दोषी की तरह जी रहे है,