Friday, May 11, 2012

मां !
चाहे जैसी भी हो,
भगवान से मिलोंगे तब वह भी ( कई बाद में मगर ) पहला सवाल यही पूछेंगे,
कि क्या मां से कभी मिले हो ? कैसे?
अगर 'ठीक' से नहीं मिले होंगे यानि डग डग पर 'ठग' के भेष में मिले होंगे,
तो भगवान उन्हें वापिस मनुष्यलोक में नए जन्म के रूप में भेज देते है,
जब यहाँ वहा आने जाने का सिलसिला पूरा हो जाता है तब स्वर्ग में स्थान मिल जाता है,
जिसे मुक्ति कहते है,
जो एक मां, सिर्फ एक मां ही दे सकती है,
जन्म के वक्त भी और,
मृत्यु के बाद भी,
जीवन की शरुआत दूध से है,
अगर अंत शराब से हो तो जन्मदाता का क्या दोष ?
क्योंकि दूध एक सत्य है, जबकि शराब बड़ा झूठ.
(रेगिस्तान में सुंदरवन का आवरण और वर्णन !)
( श्री हरीश खेतानी "हरि")

1 comment:

Shree (Harish M. Khetani) Haree said...

मात पिता की सदभाव समेत सेवा, जो किसी भी ईश्वर की सत्य मन से की हुई भक्ति के बराबर है,
जीवन-नीति में दोनों का, यानि की सेवा और भक्ति का होना जरुरी है, वर्ना सब कुछ झूठ ही झूठ है,
भक्ति ही नहीं होंगी तो सेवा की शक्ति भी कमजोर ही होंगी,
चूँकि सही शक्ति प्राप्त करने के लिए जरुरी होंगी पर्याप्त सहनशक्ति,
जबकि भक्ति होंगी किन्तु सेवा भाव का अभाव होंगा तो भी वह कमजोरी का ही प्रभाव होंगा,
बस सेवा और भक्ति को मन मंदिर में कायम रहने दो, जीवन में स्वर्ग नजर आएंगा,
और जीवन का वही स्वर्ग, ईश्वर के स्वर्ग का मार्ग बन जाएंगा.
(श्री हरीश खेतानी "हरि")