Monday, May 16, 2011

''जिसे चोरी नहीं माना जाता, उसे चतुराई कहा जा सकता है''


जो लोग धन दौलत के पीछे पड जाते है, ऐसी पक्रिया में वह अक्सर जीवन के नियम और रिवाज तक भूल जाते है,
जो लोग बहुमूल्य रिवाजो का अमल नहीं करते, उन्हें तक, तक़दीर और ताकत का वरदान नहीं मिलता है,
किंतु मन और तन से जो सच्चा, दुरस्त, साफ, और चतुर मानव होता है उन्हें, ऐसे कई वरदान यूँही मिल जाते है,
जिसके बदौलत धन दौलत भी उसके पीछे पड जाती है, ऐसी सफलता को मानव की बड़ी चतुराई मानी जा सकती है.
और सच्चाई तथा चतुराई से जो कुछ भी प्राप्त हुआ हो उसे चोरी का नाम नहीं दिया जा सकता..

कड़ी मेहनत के पसीने की ताकत से जो प्राप्त हो वह चतुराई, ऐसी ताकत के बिना जो मिले वह चोरी.
दौलत के पीछे नहीं, बल्कि दौलत को पीछे पड़ने दो तो वह मानव की चतुराई,
वर्ना चोरी.

मगर अफ़सोस की बात तो यह है कि आजकल हर जगह चतुराई काफी कम देखने को मिलती है,
इसीलिए नकली, बनावट और चोरी का दौर चल रहा है, जहाँ संयम, स्वयं तथा स्व का कोई वर्ग ही नहीं है,
किन्तु स्वर्ग तो चतुराई के दौर में उपलब्ध हो सकता है, वहां ईश्वर भी सदा साक्षात् रूप में विराजमान होते है,

तो फिर उन्हें चोरी के आलम में ढूंढने के गलत प्रयास क्यों ?

( श्री हरीश खेतानी ''हरि'' )

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